जो आज सोचा है उसे अभी कर के आना है,
कल किसने देखा परसो का क्या ठिकाना है
शूल से बने पथ पर मुझे अब चलते जाना है,
जो न कर पाया अबतक उस कर दिखाना है
गिर के मुझे उठना है न कोई अब बहाना है
विफलताओं से मुझे अब नही घबराना है
अब तक क्या पाया है मैंने ये नही सोचना है
करके संघर्ष अब हवाओ का रुख़ मोड़ना है
गलतियों को सुधार के सफलता को पाना है
सर्दी में भी अब पसीने का लहू बहाना है।
अविनाश सिंह
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