Wednesday, October 7, 2020

235:-कविता

 जब भी सोया तब खोया हूं

अब जग के कुछ  पाना है

युही रातों को देखे जो सपने

जग कर अब पूरा करना है

कैसे आये नींद मुझे अबकी

ऊंचे जो मेरे सभी सपने है

दिन का  कोई भरोसा नही

ये काली रात मेरे अपने है।

बेच दिया रात की नींद को

भोग भरे इस सुख चैन को

अब मुझे कुछ तो पाना हैं

युही हाथ न मलते रहना है

मैंने  खुद को  पहचाना  है

अब नही आराम पाना है

मुझे आगे बढ़ते जाना है।


अविनाश सिंह

8010017450

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