माना बेटी जाती ससुराल
होता उसका हाल बेहाल
पर वह नही होती अबला
बन जाती है वो सबला
ससुराल की बनती चिराग
सास की करती है वो सेवा
तो ससुर की बनती है दवा
पूरे घर को भोजन कराती
बच्चों को पेट में है पालती
घर की जिम्मेदारी उठाती
घर का राशन वो चलाती
उसे कितने काम है होते
पर कभी नही वो डरती है
हिम्मत से काम करती वो
उसेअबला कैसे कह दूँ मैं
जिसमें दुर्गा जैसी रूप हो
काली माँ जैसी स्वरूप हो
उसे अबला न कह सकता
उसके ऐसा संसार में कोई
सबला नही है हो सकता।
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