पिताजी के सामने झुकने का मजा ही कुछ और है
जितना मैं झुकता हूँ उतना ही अधिक सीखता हूं
जो दुनिया उनके कंधों पे बैठ कर देख लिया मैंने
उसे आज देखने के खातिर मैं दर दर भटकता हूं
अविनाश सिंह
8010017450
जब भी सोया तब खोया हूं अब जग के कुछ पाना है युही रातों को देखे जो सपने जग कर अब पूरा करना है कैसे आये नींद मुझे अबकी ऊंचे जो मेरे सभी सपने...
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