Monday, July 13, 2020

186:-पंक्ति।

पापा की फटकार से तो
हम अक्सर सहम जाते थे
सब कुछ छोड़ छाड़ हम
किताबों में लग जाते थे।

सुनकर उनकी आवाज़ को
हम शांत मन हो जाते थे
कही पापा को न पता चले
इस डर से हम सो जाते थे।

पर अब तो हम बड़े हो गए
अब कहाँ हमे असर होता हैं
उनकी हर बातो का अब
किसको अब सब्र होता हैं।

अविनाश सिंह
8010017450

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