Saturday, July 11, 2020

138:-पंक्ति।

जलती धरती,मन मेरा
करता है यह प्रतिशोध
जाने कैसे वो सह लेती
सम्पूर्ण पृथ्वी का बोझ।

अभिव्यक्ति से घबराना कैसा
देना है  जवाब जैसे  को तैसा
बनना है तुम्हे भी प्रकृति जैसा
खुले मन के अभिव्यक्ति जैसा

अविनाश सिंह
8010017450

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