Saturday, July 11, 2020

134:-पंक्तियां।

जाने किस उम्र की वो  सजा देती है
मेरे टूटने  बिखरने पे वो मजा लेती है
अब किस तरह से अपना दर्द दिखाए
वो कब्र पे आके आज भी हँस लेती है

अविनाश सिंह
8010017450

No comments:

Post a Comment

हाल के पोस्ट

235:-कविता

 जब भी सोया तब खोया हूं अब जग के कुछ  पाना है युही रातों को देखे जो सपने जग कर अब पूरा करना है कैसे आये नींद मुझे अबकी ऊंचे जो मेरे सभी सपने...

जरूर पढ़िए।