घर में भी सुना पड़ा,बेटी का निकाह हुआ
दुल्हन के संग जाने , क्यों ये संहार हुआ।
जाने कितने सपने, सजाई थी वो शादी के
मेहंदी वाले हाथों को,स्याही से प्यार हुआ।
मिला नही गाड़ी जब, दहेज के समान में
बेटी पर बैलों जैसा, क्यों अत्याचार हुआ।
सुन ताने साँसु माँ के, भरे ले पेट अपना
एक रोटी के लिए क्यों, दुर्व्यवहार हुआ।
फूल जैसी नर्म नर्म,हाथों को जब देखा तो
मोतियों के फफोले थे ,तेल से वार हुआ।
बाई जैसा काम कर, दिन रात एक किया
नही मिला उसे कुछ,हाथों से प्रहार हुआ।
मिला नही सुख चैन,दुःखों का पहाड़ टूटा
जेल जैसा घर में भी, क्यों व्यवहार हुआ।
अविनाश सिंह
8010017450
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