Sunday, July 19, 2020

214:-पंक्ति।

जिन्हें हमनें अपना समझा 
वही हमारे बेगाने निकलें
जिनका हमनें सम्मान किया
उन्होंने हमारा तिरस्कार किया
हम सब कुछ बस सहते रहें
उन्हें हम अपना कहते रहें
फिर भी हमें वो नही मिले
हाथ समझ कर थामा जिनकों
वो काँटो से लिपटे निकले।
फूल समझ कर संवारा जिन्हें
शूल बन कर वह मिले हमें।

अविनाश सिंह
8010017450

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