Monday, July 13, 2020

177:-पंक्ति।

मैंने शहर देखा है मैंने गाँव देखा है
जो शांति गाँव में हैं वो कहीं न देखा
यह तो मजबूरी हैं इंसान की वरना
मैंने पैकेट का दूध सिर्फ शहर में देखा

अविनाश सिंह
8010017450

No comments:

Post a Comment

हाल के पोस्ट

235:-कविता

 जब भी सोया तब खोया हूं अब जग के कुछ  पाना है युही रातों को देखे जो सपने जग कर अब पूरा करना है कैसे आये नींद मुझे अबकी ऊंचे जो मेरे सभी सपने...

जरूर पढ़िए।