Saturday, July 11, 2020

141:-पंक्ति।

तुकबंदी से मैं करूँ कमाल
तभी  कहते मुझे  बेमिसाल

बिन पैसे के की हुई हर दोस्ती
हर रिश्तों में से बेमिसाल होती

यह खवाइस सालो साल रखना
खुद को सबसे बेमिसाल रखना

आग के जलने से ही मशाल बनता
अपने कर्मों से ही बेमिसाल बनता।

जिंदगी से न कोई डर न ही सवाल है
हर कदम हर जवाब मेरे  बेमिसाल है

शायर नही जो हर दिन हर  साल लिखूं
पर ये सत्य है जो लिखूं बेमिसाल लिखूं।

अविनाश सिंह
8010017450

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